लोकदर्शन 👉शिवाजी सेलोकर
स्थान – श्रीनगर (कश्मीर)
समय – 1947 का युद्ध
पाकिस्तानी सेना और कबीलाई लड़ाके काफी तेज गति से आगे बढ रहे थे। हज़ारों कश्मीरी लोगों की हत्या कर आगे बढ़ रहे थे।
कश्मीर को शीघ्र सैन्य मदद चाहिए थी। कश्मीर के महाराजा हरी सिंह की सेना पाकिस्तान का मुकाबला नही कर पा रही थी। तब महाराजा हरी सिंह जी तत्कालीन हिन्दुस्तान के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल से मद्त मांगी।
तब दिल्ली के सेना कार्यालय से श्रीनगर को संदेश प्राप्त हुआ कि किसी भी परिस्थिति में श्रीनगर के हवाई अड्डे पर पाकिस्तान का कब्जा नहीं होना चाहिए। शत्रु श्रीनगर को जीत ले, तो भी चलेगा, किन्तु श्रीनगर का हवाई अड्डा बचना चाहिए। हम हवाई जहाज से सेना की टुकड़ीया भेज रहे है।
”हवाई अड्डे पर सर्वत्र हिम (बर्फ) के ढेर लगे हैं। हवाई जहाज उतारना अत्यंत कठिन है।” श्रीनगर सें यह प्रति उत्तर दिल्ली के सेना कार्यालय में आया।
दिल्ली से उत्तर आया कि तुरंत “मजदुर लगाकर तुरन्त हवाई अड्डे से बर्फ हटाइए, चाहे कितनी भी मजदूरी देनी पड़े और इस काम के लिए कितने भी मजदूर लगाने पड़े, तुरंत व्यवस्था कीजिए।”
उधर श्रीनगर से जवाब आया कि ‘मजदूर नही मिल रहे हैं। स्थानीय मजदूरो पर इस समय भरोसा नही किया जा सकता।’
और तब ऐसे समय में हिन्दुस्तान के सेना के प्रमुखों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की याद आई ।
रात्रि के ग्यारह बजे थे। एक सैन्य जीप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- कार्यालय के आगे आकर रूकी । उसमें से कुछ सैन्य अधिकारी उतरे।
कार्यालय में प्रमुख स्वंयसेवकों की बैठक चल रही थी।संघ के प्रेमनाथजी डोगरा व अर्जुन जीं वही बैठे थें।
सेनाधिकारी ने गंभीर स्थिति का संदेश दिया। फिर उसने पूछा- “आप हवाई अड्डे पर लगे हिम के ढेर हटानें का कार्य कर सकेंगे क्या?”
अर्जुन जी ने कहा- “अवश्य!कितने व्यक्ति सहायता के लिए चाहिए।”
‘कम से कम डेढ़ सौ, जिससे तीन-चार घंटों में सारी बरफ हट जाये।”
अर्जुन जी ने कहा – “हम छः सौ स्वयंसेवक देते है।”
“इतनी रात्रि में आप इतने…..?” सैन्य अधिकारी ने आश्चर्य से कहा
“आप हमें ले जाने के लिए वाहनों की व्यवस्था कीजिए। ४५ मिनट में हम तैयार है ।”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि पद्धति का कमाल था कि तय समय पर सभी 600 स्वयंसेवक कार्यालय पर एकत्र होकर साथ साथ चले गये।
दिल्ली को संदेश भेजा गया-“बरफ हटाने का काम प्रारंम्भ हो गया है। दिल्ली से हवाई जहाज कभी भी श्रीनगर आने दें।”
दिल्ली से जवाब आया कि “इतनी जल्दी मजदूर मिल गये क्या”
‘हाँ, पर वे मजदूर नही ,सभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं।’
रात्रि के डे़ढ बजे वे काम पर लग गये। २७ अक्टुम्बर को प्रातः के समय प्रथम सिख रेजीमेन्ट के ३२९ सैनिक हवाई जहाज से श्रीनगर उतरे और उन्होने बड़े प्रेम से स्वंयसेवको को गले लगाया । फिर क्या था एक के बाद एक ऐसे 40 हवाई जहाज उतरे।
उन सभी में प्रयाप्त मात्रा में शस्त्रास्त्र थे। सभी स्वंयसेवको ने वे सारे शस्त्रास्त्र भी उतार कर ठिकाने पर रख दिये ।
हवाई अड्डा पाकिस्तान के कब्जे में जाने से बच गया। जिसका सामरिक लाभ हमें प्राप्त हुआ।
हवाई पट्टी चौड़ी करने का कार्य भी तुरन्त करना था, इसलिए विश्राम किये बिना ही स्वंयसेवक काम में जुट गये। इससे पाकिस्तान आगे बढ़ने से रुक गया और कश्मीर बच गया।